सचिव का संदेश

निदेशक/सचिव
डॉ0 गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी
संदेश
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर
हम सफर मिलते गए और कारवां बनता गया।
15 जून 1996 को गठित विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान का राष्ट्रीय स्वरूप स्थापना के समय ही बन गया था. जिसमेें मेघालय, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं मध्य प्रदेश के सदस्य थे। प्रयागराज में काव्य, गीत, अतांकक्षरी, एकल नृत्य एवं सामूूहिक नृत्य, सामान्य ज्ञान, बाल मेला, खेल कूद से शुरु हुआ सफर राष्ट्रीय स्तर पर 2003 सेे साहित्यकारों, पत्रकारों, समाजसेवियों ंको सम्मानित करने का निर्णय लिया गया. इस आयोजन को साहित्य मेला नाम दिया गया, जो अनवरत जारी है। साहित्य मेला में अभी तक 150 से भी अधिक विद्वतजनों, समाज सेवियों व कलाकारों को सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें कई राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध भी है। साहित्य यात्रा (2008 से अनवरत जारी), काव्य सम्राट, लघुकथा सम्राट (2018 से जारी), 170 से भी अधिक पुस्तको का प्रकाशन, 1996 से 2001 तक त्रैमासिक स्नेह तथा सितम्बर 2001 से मासिक विश्व स्नेह समाज का निरन्तर प्रकाशन तक जारी है।
संस्थान द्वारा पांच अस्थायी पुस्तकालयों का भी संचालन किया जा रहा है. संस्थान द्वारा कोरोना प्रकोेप काल में 21 मार्च 2020 से बच्चों एवं बड़ो सबके लिए विभिन्न प्रतियोेगिताओं (स्टेटस प्रश्नोत्तरी, काव्य, चित्रकला, गीत, नृत्य, कहानी वाचन, साप्ताहिक मुद्दा) का आयोजन निरन्तर चलाया गया।
2003 से संस्थान अस्थायी स्नेहाश्रम (अनाथाश्रम एवं वृद्धाश्रम, असहायों) का संचालन प्रांरभ किया गया जो अभी भी सीमित रुप में चल रहा है. संस्थान द्वारा समय-समय पर गरीब छात्रों को पुस्तको, कापियों, उनकेे शुल्क की भी व्यवस्था की जाती रही है. अन्यान्य सामाजिक कार्य, वृक्षारोेपण, आपदाओं में सहयोग आदि कार्य भी सुचारु रुप से चलाए जा रहे है.
आप लोगों बताते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि संस्थान का अपना निज भवन में पुस्तकालय एवं वाचनालय, प्र्रयागराज के श्रृंग्वेरपुुर क्षेत्र मेें निर्माणाधीन है इसी भवन में स्नेेहाश्रम (वृद्धाश्रम एवं अनाथाश्रम) का भी संचालन किया जाएगा.
संस्थान ने मुश्किल से मुुश्किल कार्यो को अंजाम तक पहुंचाया। संस्थान का कुनबा न केवल सम्पूर्ण भारत बल्कि विदेशों में भी फैल चुुुका है.
आप सब हिन्दी प्रेमियों एवं समाज सेवियों के सहयोग से संस्थान ने 15 जून 2021 को अपना रजत जयंती मनाया है। अंत में मैं यही कहूंगाः-
जय हिन्द, जय हिन्दी।
डॉ0 गोकुलेश्वर कुमार द्विवेद