ज़माना था, एक छोटा सा गाँव था जहाँ सब लोग खुश थे और एक दूसरे का साथ देते थे। इस गाँव का नाम था सुंदरनगर। यहाँ के लोग बहुत ईमानदार और मेहनती थे।
एक दिन सुंदरनगर में एक अजीब और गरीब आदमी आया। उसका नाम था अजब सिंह। अजब सिंह बिल्कुल अलग था दूसरों से। उसने कभी अपना चेहरा दिखाया नहीं था और हमेशा लंबी कोट और टोपी पहनी होती थी। लोग उसके बारे में कई कहानियाँ सुनाते थे, कुछ कहते थे वह एक जादूगर है, तो कुछ कहते थे वह एक राजा है।
एक दिन, गाँव के बच्चे खेलते खेलते अजब सिंह के पास गए और पूछा, “चाचा, आप कहाँ से आए हो? हमें आपके बारे में बहुत कुछ जानना है।”
अजब सिंह ने मुस्कुराते हुए उनसे कहा, “मेरे बच्चों, मैं एक संत हूँ। मैंने यहाँ आकर तुम्हें अच्छाई और प्यार देने का निर्णय किया है।”
बच्चों ने अजब सिंह को बहुत पसंद किया और उनके साथ खेलने लगे। धीरे-धीरे, गाँव वाले भी अजब सिंह को स्वीकार करने लगे और उन्हें अपना हिस्सा मानने लगे।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें लोगों को उनके बाहरी रूप के आधार पर नहीं जज़्ज़ा करना चाहिए, बल्कि उनके अच्छाई और मानवीय गुणों को महत्व देना चाहिए।
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