नहीं रहे गोकुलेश्वर……..जैसे

आजकल कैसे उच्च शिक्षित, कथित प्रकाण्ड विद्वान भी कूपमण्डूक हो गए है। इसकी बानगी आए दिन देखने, सुनने को मिलती रहती है। सोशल मीडिया के इस दौर में फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, ह्वाट्सएप् पर कोई भी टिप्पणी, जानकारी डालकर छाये रहते हैं। सूचना कोई भी हो, हमें लाईक, कमेंट या इसको प्रदर्शित करने वाले विभिन्न चिह्नों (जो विभिन्न सोशल मीडिया पर उपलब्ध है) की भरमार रहती है। अगर टिप्पणी, जानकारी किसी सुंदर महिला की हो तो बात ही मत पूछिए। कूड़ा-करकट, कचरा, कुछ भी डालें- हजारों पसंद और कमेंट मिल जाते है। दूसरा स्थान आता है-फिल्मी कलाकारों का, जिनकी दुनिया सामान्य जीवन से बिलकुल अलग होती है। तीसरा- कुछ सौभाग्य उच्च पदासीन पुलिस अधिकारियों, पुलिस की वर्दी वाले डीपी, प्रोफाइल रखने वाले (चाहें फर्जी ही क्यों न हो) को मिलता है। चैथे स्थान पर आते है- उच्च पदासीन अधिकारी। कुछ खास लोगों, वर्ग की पसंद होते है- लाल बत्ती वाले नेताजी लोग। इसके बाद क्षेत्रीय स्तर पर भैय्या लोग (भाई, गुंडा, बदमाश) का नंबर आता है। अंतिम क्रम में आता है- गंभीर, समाज सुधारक, शिक्षक वर्ग।

यह देखना भी नहीं कि क्या पोस्ट है, उसका भाव क्या है? बस ऊपर देखा, एक दो पंक्तियाँ पढ़ीं, अपनी सुविधानुसार विचार बनाया या पहले से ही मन में रखे हुए हैं, उसको ही कमेंट में डाल दिए और अगले उसके विचार, किसी अन्य की क्रिया, प्रतिक्रिया को देखा, और काम समाप्त हुआ।

अगर हम आँकड़ों में सोशल मीडिया को देखें तो जनवरी 2023 में भारत में 398 मिलियन से ज्यादा लोग 18 साल या उससे ज्यादा उम्र के थे। सभी इंटरनेट यूजर में से 67ण्5ः ने कम से कम एक सोशल नेटवर्किग प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया। भारत में फेसबुक और यूट्यूब सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया नेटवर्क है।

भारत में केवल 43ः लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा है। इसमें अधिकांश लोग प्रतिदिन 2.6 घंटे प्रतिदिन सोशल मीडिया पर खर्च करता है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार लगभग 54ः भारतीय सच्ची जानकारी खोजने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। जबकि वैश्विक स्तर पर यह आँकड़ा सिर्फ 37ः है और अमेरिका में सिर्फ 29ः है।

बैन एंड कंपनी के एक अध्ययन में यह भविष्यवाणी की गई है कि भारत वित्त वर्ष 2020-25 के बीच सोशल काॅमर्स में 55.60ः की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर देखेगा।
एस.एक्स.डब्ल्यू 2019 में सेंटर फाॅर ह्यूमन टेक्नोलाॅजी के सह-संस्थापक अजा रस्किन ने ”डिजिटल अकेलेपन की महामारी’ के बारे में बात करते हुए लिखा कि सोशल मीडिया के उपयोग से संबंधित अवसाद और अकेलेपन के बढ़ने पर केंद्रित थी।

”सूचना महामारी ने सीमाओं के पार के देशों को प्रभावित किया है। दुनिया भर में 60ः लोगों का मानना है कि उनके देश में औसत व्यक्ति को राजनीति/समाज के तथ्यों की अब कोई परवाह नहीं है। सर्वेक्षण में शामिल अन्य देशों की तुलना में इटालियन 48ः, जापानी और चीनी 49ः सोशल मीडिया की खबरों पर विश्वास करते है। 65ः लोग सोचते है कि अन्य लोग इंटरनेट पर एक बुलबुले में रहते है और ज्यादातर उन विचारों की तलाश करते हैं जिनसे वे पहले से सहमत होते हैं, लेकिन केवल 34ः कहते है कि वे अपने स्वयं के बुलबुले में रहते है। ग्रीस में समाचार मीडिया पर उपभोक्ताओं का विश्वास विश्व स्तर पर सबसे कम 19ः था।

मेरे संपादकीय ”अपनी बात“ के कायल, मित्र, या प्रेमी पाठकों में से एक प्रेमी ने कुछ दिनों पहले मेरे संपादकीय ”अपनी बात“ को पढ़कर फेसबुक पर पोस्ट डाली, जिसका अतिसंक्षेप में भाव यह था कि ”गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी जी जैसे निर्भीक, निडर और खुलकर अपनी बात लिखने वाले पत्रकार और संपादक अब नहीं रहे। अब तो पत्रकारिता एवं संपादकीय में क्या लिखा जाता है, यह समझना भी मुश्किल हो जाता है।“ इसका शीर्षक लगाया था ”नहीं रहे गोकुलेश्वर………..जैसे

इस फेसबुक पोस्ट को पढ़कर मेरे तमाम शुभचिंतको ने ऊँ शांति, ऊँ शांति…, भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें, बड़े अच्छे आदमी थे, बहुत सरल स्वभाव के थे, ओह दुःखद…… इत्यादि। यह संख्या और बढ़ जाती लेकिन विराम तब लगा, जब मेरे दूसरे शुभचिंतक ने लिखा-”अरे भाईयों, पूरा पोस्ट तो पढ़ तो लिया करो, द्विवेदी सर से अभी थोड़ी देर पहले मेरी वार्ता हुई है। वे अभी सकुशल व स्वस्थ हैं। बिना पूरी सामग्री पढ़े आप लोग भले चंगे आदमी को ……“

मेरे शुभचिंतक, जिन्होंने यह पोस्ट डाली थी, उन्होंने वह पोस्ट डिलीट कर दी और उन्होंने मुझे फोन किया तथा कुछ स्क्रीन शाॅट व्हाट्सएप पर शेयर किया। उन्होंने फोन वार्ता में अभिवादन करते हुए कहा ”सर, मैं बहुत ही अधिक शर्मिदा हूँ“।

मैने कहा, ”किस बात के लिए“?

तब उन्होंने पूरा वाक्या मुझे बताया। मैंने कहा, ”यही हो रहा है। किसी पोस्ट को बिना पढ़े, समझे-जाने लोग कुछ भी क्रिया-प्रतिक्रिया देने लगते है“। इसका ही फायदा उठाते हुए कुछ असामाजिक तत्व सोशल मीडिया पर भ्रामक खबरें, सूचनाएं पोस्ट करते हैं, बाकी लोग बिना समझे बूझे प्रतिक्रिया देने लगते हैं और प्रतिक्रिया देने तक तो फिर भी ठीक है, लोग व्यवहार में भी लग जाते है। दंगा, फसाद, नफरत करने लगते है। किसी ने पोस्ट डाली- ”वहां खाने में कोई थूक रहा था, वहां फलां जानवर का मांस रखा था, वह दूसरे धर्म की लड़की को छेड़ रहा था इत्यादि …….। किसी भी पोस्ट को पढ़ने व जानने की जहमत कौन उठाए। आपने तो एक अच्छी पोस्ट डाली थी, उस पर नासमझी वाली प्रतिक्रियाएं थी। अक्सर आता है कि फलां कलाकार की मृत्यु, शोक की लहर, …….। जिंदा व्यक्ति को भी मुर्दा घोषित करने में पता नहीं क्या आनंद आता है।

मैंने उनके स्क्रीन शाट को पढ़ा तो कई ऐसे लोग भी शामिल थे, जो शिक्षा जगत के मानिद शिक्षक, सहायक आचार्य, आचार्य, संपादक व पत्रकार थे। कुछ से तो मेरी व्यक्तिगत रूप से अच्छी पहचान भी है।

आज इस बात की आवश्यकता है कि सोशल मीडिया के किसी भी पोस्ट पर प्रतिक्रिया देने से पूर्व अच्छी तरह पढ़ लिया जाए। अगर कोई सूचना है तो विभिन्न स्रोत से सही जानकारी प्राप्त करें, प्रतिक्रिया देना उसके बाद ही सही रहेगा। सोशल मीडिया की किसी भी भ्रामक खबर को व्यवहार में लाने से पूर्व तो गहन जानकारी जरूरी है। एक गलत जानकारी आपको किसी मंच, समूह में शर्मिंदा कर सकती है।

यह समस्या केवल सोशल मीडिया की नहीं, प्रिंट मीडिया की भी है। इस अपनी बात के शीर्षक को पढ़कर कुछ लोग मन में शोंक संतप्त हो जाए। शायद मुझे इस संपादकीय के बाद कुछ लोगों की शोक संवेदनाएं पढ़ने, देखने को मिल जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बस आप मत शामिल हो जाइएगा इस भेड़िया चाल में………

 

लेखक-

श्री गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी

Author

  • authors books shows writer fiction fables showing 46492673

    लेखकों के द्वारा प्रकाशित लेख: हमारे लेखकों ने विविध विषयों पर उच्च गुणवत्ता के लेख लिखे हैं। इनमें साहित्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाजशास्त्र, और कला जैसे विषय शामिल हैं। प्रत्येक लेख में गहन शोध और विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठकों को सटीक और विस्तृत जानकारी मिलती है। हमारे लेखकों की लेखनी में स्पष्टता, सजीव चित्रण, और प्रभावशाली शैली की विशेषता है, जो पाठकों को अंत तक बाँधे रखती है।

    View all posts
4 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments