चहके पंछी दिनकर कहता -‘मनलाभ’ के छंद
विषय – प्रभाती आधार छंद — सार छंद चहके पंछी दिनकर कहता, कितनी सुंदर माया। रंग-बिरंगे चित्र उभरते, देखो नभ […]
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विषय – प्रभाती आधार छंद — सार छंद चहके पंछी दिनकर कहता, कितनी सुंदर माया। रंग-बिरंगे चित्र उभरते, देखो नभ […]
बाबुल की देहरी @डॉ शिप्रा मिश्रा घर में प्रवेश करते ही नजर आलमारी पर जा रुकी- शर्बत सेट, किताबें, कैसेट्स
आजकल कैसे उच्च शिक्षित, कथित प्रकाण्ड विद्वान भी कूपमण्डूक हो गए है। इसकी बानगी आए दिन देखने, सुनने को मिलती
हमें यह जानना होगा कि अगर समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है तो इसकी वजह क्या है? आज
आसमान के नीले रंग में, छुपी है चाँदनी की चमक। सितारों की रोशनी में, है छिपा हर सपनों का अरमान।
किताब के बारे में एक कविता: अक्षरों की सांझ पर खोजता हूँ, पन्नों के बीच खोया हुआ हूँ। किताबों की
ज़माना था, एक छोटा सा गाँव था जहाँ सब लोग खुश थे और एक दूसरे का साथ देते थे। इस
चलो एक कविता साझा करते हैं: जीवन की राहों में चलते, सपनों की बाहों में खो जाते। सूरज की किरणों
बिना ख्वाब के ज़िंदगी बेकार है, सपनों के बिना हर रोज़ अधूरा है। रंग भरे ख्वाबों से भरी ये ज़िंदगी,