VHSSS

जंगल में महासभा

जंगल में महासभा

डॉ. नवल पाल प्रभाकर दिनकर

आज जंगल में एक महासभा होने वाली है। जंगल के सभी जीव-जन्तु जंगल के सबसे ऊँचे टीले की तरफ़ भागे जा रहे हैं। इन जीवों में सभी प्रकार के जीव-जन्तु हैं — जिनमें कुछ मांसाहारी, कुछ शाकाहारी, कुछ उड़ने वाले, कुछ रेंगने वाले और कुछ फुदकने वाले। सभी एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं।
यह महासभा किसी और ने नहीं बल्कि जंगल के शाकाहारी जीवों को हिंसक जीवों से बचाने के लिए खरगोश ने बुलाई थी। कुछ ही समय में वहाँ उस मचान के चारों तरफ़ सभी प्रकार के जीव एकत्रित होने लगे। कुछ ही समय में वहाँ पर सभी प्रकार के जीव जैसे कि मोर, कबूतर, मैना, कोयल, हंस, गीदड़, लोमड़ी, भेड़िये, जंगली गधे, हिरण और भी अन्य प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित हो गये।

कुछ समय बाद वहाँ एकत्रित सभी जीव-जन्तुओं में कानाफूसी होने लगी। अब तक मचान पर कोई भी बोलने के लिए नहीं चढ़ा था। सभी सोच रहे थे कि हमारे यहाँ बुलाने के लिए नोटिस आखिर किसने भेजा। अब यहाँ पर वह खुद तो आया भी नहीं। तभी उनमें से एक सफ़ेद खरगोश उछलकर मचान पर जा चढ़ा और कहने लगा—

“देखो भाइयो, यहाँ बुलाने के लिए मैंने ही तुम्हारे पास तुम्हारे घर पर वह लैटर भेजा था। आज आपको संबोधित करते हुए मुझे यह दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे जंगल में जो पंचायती राज है, उससे शायद ही कोई ऐसा आम जीव बचा है जो अछूता रहा हो; अन्यथा सभी को कष्ट झेलने पड़ रहे हैं। सभी जीव हमारे राजा से दुखी हैं।

हमने जो राजा चुना था वह निरंकुश है। वह अपनी प्रजा को दुख में डालकर मज़े से रह रहा है। वह अय्याशी करता है। किसी की भी माँ-बेटी को उठा कर अपने घर मगा लेता है। आम जनता का ख़ून चूस रहा है। कोई अपनी फ़रियाद भी लेकर जाए तो किसके पास? यदि कोई उसके पास जाता भी है तो वह उसे मारकर खा जाता है, या उसके जो मंत्री हैं, वे उसके साथ दुर्व्यवहार करके उसे मार देते हैं और खा जाते हैं। हम उनके इस अत्याचार से बहुत दुखी हो गये हैं।

अब इस बार मेरा मानना है कि हमें उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर उसे पदच्युत कर देना चाहिए, और जंगल में राष्ट्रपति शासन लागू करा देना चाहिए; इससे ऊपर हाईकोर्ट में इस केस को ले जाकर वहाँ के मुख्य न्यायाधीश को यह ज्ञापन सौंप कर दोबारा से जंगल में चुनाव कराने की माँग करनी चाहिए।”

यह सुनकर कौआ बोला— “एक बताइए जनाब, तो फिर हम जंगल का सरपंच चुनें तो किसे? क्योंकि मुझे लगता है कि हम जितने भी शाकाहारी जीव हैं, वे किसी भी मांसाहारी जीव से अपनी खुद रक्षा नहीं कर सकते। फिर हमारी रक्षा कौन करेगा? यदि कोई शाकाहारी जीव बने तो वह अपनी जनता अर्थात जंगली जीवों को मांसाहारियों से कैसे बचाएगा?”

कौवे की बात सुन गीदड़ कहने लगा— “जहाँ तक मेरा मानना है, हमारा सरपंच शेर ही ठीक है, क्योंकि वह हम सभी जीवों की बाहर वाले शत्रु जीवों से रक्षा कर सकता है। अब वह हमारी रक्षा करेगा तो उसे भी कुछ मेहनताना चाहिए, और फिर उसके जो मेंबरगण हैं उनका पेट भरना भी उसकी जिम्मेदारी है। यह पद संभालना इतना आसान नहीं है — सबकी सुननी पड़ती है।”

उसकी बातें सुनकर कोयल कहने लगी— “सुननी सबकी पड़ती है और करना कुछ नहीं। ये कैसा सरपंच है। आज तो हम औरतों का घर से निकलना ही दुश्वार हो गया है। पहले हमें कहीं भी जाने की पूरी आज़ादी थी और आज हम घर से निकलती भी हैं तो पूरे अदब के साथ निकलना पड़ता है। पूरे कपड़े पहनने के बावजूद भी हमें हवस की नज़र का सामना करना पड़ता है। बाहर निकलते ही कुछ मनचले कौवे रास्ते में हमें रोक लेते हैं। जिनको हमारी तरफ़ देखने से भी डर लगता था, आज वही जीव जैसे मोर, कबूतर, तोते आदि हम पर बुरी नजरें बनाए रहते हैं। मैं तो कहती हूँ कि ऐसे पंचायती राज को ख़त्म किया जाये और नए शासन की व्यवस्था की जाये।”

उसकी बातें सुनकर पास ही बैठा बगुला कहने लगा— “देखो बहनजी, आप हम नर जीवों पर बेकार ही इलज़ाम लगा रही हैं। सारे नरजीव एक जैसे थोड़े ही होते हैं। मानता हूँ कुछ स्वार्थी नरजीव हैं जो हमारी बहनों-मादाओं को वासना की नज़र से देखते हैं, पर सभी तो एक जैसे नहीं हैं न। इसलिए थोड़ा-सा ध्यान रखिये कि आपकी बातों से किसी अन्य भाई को किसी भी प्रकार कोई परेशानी ना हो।”

यह सुनकर कोयल ने उससे और अन्य सभी जीवों से माफ़ी माँगी।

खरगोश उन सभी की बातों को ध्यान से सुन रहा था। वह उनसे कहने लगा— “देखो भाइयो और बहनो, मैं मानता हूँ कि इस पंचायती राज में हमारे समाज में बहुत से अपराध बढ़े हैं। इसलिए ही यह महासभा आज बुलाई गई है। हमें आपस में लड़कर नहीं, इस समस्या का निवारण सोचना है।”

यह सुनकर हंस कहने लगा— “अब इस बात का क्या निवारण हो सकता है? आपके विचार में क्या होना चाहिए? बताते हैं कि इस मामले में बगुले का दिमाग तेज चलता है; सो हमें उन्हीं से इस मसले पर विचार करना चाहिए।”

यह सुन कर बगुला कहने लगा— “मेरे हिसाब से तो इस समस्या का निवारण पाने के लिए हमें फिर से चुनाव की घोषणा के लिए मुख्य न्यायाधीश को लिखना चाहिए। वो यहाँ पर एक बार फिर चुनाव कराये — उसमें हम सभी की सहमति से अपना भी एक उम्मीदवार खड़ा करें और सारी की सारी वोट हमारे उम्मीदवार के पक्ष में डालें। शेर की पूरी तरह हार होनी चाहिए। तभी हमें इससे छुटकारा मिल सकता है। यदि आप मेरी बात से सहमत हों तो अपना कोई भी एक उम्मीदवार चुन लो और न्यायाधीश के पास पत्र भेज दो।”

यह सुनकर उल्लू कहने लगा— “मैं बगुले की बात से सहमत हूँ। पर यह बताइए कि अब फिर चुनाव होगा तो हम उसके विरोध में खड़े कैसे होंगे?”

सभी जीव आपस में बात करने लगे। यह देख खरगोश उस टीले पर खड़ा सभी को शांत करते हुए बोला— “देखो आज हम सभी ने एक ऐसे जीव को चुनना है जो हमारी हर तरह से रक्षा करे, हमारे जंगल में हर वह काम करे जिसकी हमें ज़रूरत है। तो बोलो ऐसा कोई है जो ईमानदारी से जंगल के काम करेगा?”

यह सुन सभी जीव एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे। कोई कुछ भी कहने को तैयार नहीं था कि वह जंगल का राज करना चाहता है। वहाँ चारों तरफ़ एक चुप्पी छा गई। सभी चुपचाप एक-दूसरे को देख रहे थे। बोलने को कोई भी तैयार नहीं था। उन्हें इस प्रकार चुप देख कर खरगोश बोला—

“जहाँ तक मैं जानता हूँ, जंगल में सबसे विशाल जीव हाथी होता है। उसका नाम ही जंगल के सरपंच पद के लिए उपयुक्त होना चाहिए।”

यह सुन हाथी खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर कहने लगा— “खरगोश भाई, मैं आपका यह बड़प्पन मानता हूँ कि आपने मुझे सरपंच पद के लिए सुझाया, पर मेरे अंदर भी कई कमियाँ हैं जो मुझे इस काम के लिए पूरी तरह उपयुक्त नहीं बनातीं। जैसे कि मैं ढीला-ढाला हूँ; सरपंच बनने के बाद और भी ज़्यादा मोटा हो जाऊँगा और जंगल के जानवर मुझ पर रिश्वतखोरी का आरोप लगा देंगे कि मैंने जंगल को सँवारने के लिए अनुदान खाकर तोंद बढ़ा ली। इस काम के लिए कोई ईमानदार ही जीव चुनो। मुझसे नहीं होगा। मुझे रहने दो।”

खरगोश कहने लगा— “लोमड़ी तुम ही सरपंच पद के लिए खड़ी हो जाओ, क्योंकि तुम भी सभी जीवों में चतुर भी हो और तेज़ दौड़ने वाली भी हो। तुम अच्छे से शासन संभाल सकती हो।”

यह सुन लोमड़ी आदब से खड़ी होकर कहने लगी— “भाई खरगोश, मैं आपका एहसान मानती हूँ कि आपने मुझे इस लायक समझा। पर जैसा भाई हाथी ने कहा, मेरे अंदर भी कुछ कमियाँ हैं। जैसे कि मैं मांसाहारी हूँ। अब घास-फूस से तो मैं अपना पेट नहीं भर सकती। मैं भी इस पद के लायक नहीं हूँ।”

उसकी इन बातों को सुनकर खरगोश ने हिरण की तरफ़ आशा भरी नज़रें डालकर देखा। उसकी दृष्टि देख ही हिरण समझ गया कि उसे सरपंच बनने के लिए कहा जा रहा है। हिरण भी उठ खड़ा हुआ और कहने लगा— “मैं मानता हूँ खरगोश भाई, आप मुझे सरपंच के लिए कह रहे हैं। मैं खूब तेज़ दौड़ भी लेता हूँ और शाकाहारी भी हूँ। मैं अपनी तरफ़ से किसी भी जंगलवासी को कोई हानि नहीं होने दूँगा, मगर जब मांसाहारी जीव जंगल के जीवों को खाने आएँगे तो मैं किसी भी प्रकार से उनकी रक्षा नहीं कर पाऊँगा और मान लो रक्षा के लिए उनके आगे भी आऊँगा तो सबसे पहले वे मांसाहारी जीव मुझे ही खा जायेंगे। सो मैं भी इस पद के योग्य नहीं हूँ।”

यह सुन खरगोश ने चील की तरफ़ देखा और कहा— “आप इस जंगल में सबसे तेज उड़ने वाले जीव हो। आप अधिक से अधिक ऊँचाई तक उड़ सकते हो और ऊपर से ही जंगल की सारी गतिविधियों पर नज़र रख सकते हो तो क्यों न मैं आपका ही नाम आगे भेज दूँ?”

यह सुन चील कहने लगा— “भाई खरगोश, आप ठीक कह रहे हैं। मैं काफी ऊपर तक उड़ सकता हूँ। बुद्धि भी ठीक है। मैं किसी भी प्रकार से जंगल को हानि नहीं होने दूँगा, मगर यह एक ईमानदारी का पद है। इस पद पर रहते हुए यदि कभी मुझसे कोई गलती हो गई तो मेरी आने वाली सभी पीढ़ियों पर कलंक लग जायेगा। सो आप मुझे तो माफ ही कर दें।”

अब खरगोश थोड़ा निराश हो गया और कहने लगा— “आज हमने जो यह महासभा बुलाई है, उसमें जब तक यह फैसला नहीं हो लेगा कि सरपंच पद के लिए कौन सही उम्मीदवार रहेगा और उसका नाम अनाउंस नहीं हो लेगा तब तक सभा भंग नहीं हो सकती।”

अब वह उल्लू से कहने लगा कि भाई इस पद के लिए मुझे लगता है कि आप ही ठीक रहेंगे क्योंकि आप रात को भी देख सकते हैं और रात में भ्रमण करते हुए आप जंगल में सभी जीवों की कुशल-क्षेम जानते रहेंगे और अन्य घुसपैठिये जानवरों से भी जंगली जीवों को आगाह कराते रहेंगे।

यह सुन उल्लू कहने लगा— “भाई खरगोश, आप सही कह रहे हैं कि मैं रात में भ्रमण कर सभी जीवों की कुशल-क्षेम जानता रहूँगा। मैं पूरी ईमानदारी से इस पर काम भी करूँगा, परन्तु मेरे सामने भी एक समस्या है कि मैं दिन में नहीं देख सकता और दिन देखे मैं यह कैसे पता करूँगा कि दिन में क्या चल रहा है? यदि पता भी कर लूँगा तो सही से न्याय नहीं कर पाऊँगा। इस बारे मुझे रहने दीजिए। मुझसे सही न्याय नहीं हो पायेगा। प्लीज़ आप मुझे माफ़ करें। मैं इस पद के लिए उपयुक्त नहीं हूँ।”

यह सुन कर खरगोश ने कहा— “देखो भाइयो और बहनो, मैंने बहुत से जीवों से पूछ लिया है, कोई भी इस पद के लिए आगे नहीं आना चाहता। अब मैं कौवे भाई साहब से यह विनती करता हूँ कि वे ही इस पद के लिए राज़ी हो जाएँ ताकि उनका नाम आगे भेज कर उन्हें निर्विरोध चुनकर जंगल का सरपंच बनाने के लिए मुख्य न्यायाधीश के पास रिपोर्ट भेजी जा सके।”

यह सुन कौआ कहने लगा— “सबसे पहले तो मैं भाई खरगोश व यहाँ पर आये सभी गणमान्य जीव-जन्तुओं, प्यारे भाइयों और प्यारी बहनों आप सबका दिल से आभारी हूँ कि जो जंगल के भ्रष्ट लोकतंत्र या शासन से आहत होकर यहाँ एकत्रित हुए हैं। मैं मानता हूँ कि हमारी जाति के कुछ जीव कुछ मनचले होते हैं — प्यारी बहन कोयल ने जो कहा वह ठीक है। पर मैं बगुले की बात से भी सहमत हूँ कि पाँचों उँगली एक जैसी नहीं होती — जैसी मानवों की कहावत है, ठीक है।

मैंने आज तक किसी भी मादा जीव की तरफ़ आँख उठाकर नहीं देखा। यह मैं अपनी प्रशंसा नहीं कर रहा हूँ। जैसा कि आप जानते हैं कि मैं मांसाहारी और शाकाहारी दोनों श्रेणियों में आता हूँ। खुदा न करे कल को मुझे सरपंच बना दिया जाये और मुझसे कोई गलत काम हो जाये तो मुझे तो सज़ा मिलनी पड़ेगी ही, साथ ही पूरे खानदान पर भी कलंक लग जायेगा। नहीं नहीं भाई, मैं भी इस पद के लायक नहीं हूँ। मुझे माफ कर दीजिए। सॉरी भाइयों और बहनों।”

यह सुन कर खरगोश कहने लगा— “देखो भाइयो और बहनो, जैसा कि मैंने आप सभी से बारी-बारी सरपंच पद के लिए निवेदन किया, परन्तु सभी ने अपनी कमज़ोरियाँ बयान कर अपना पल्ला झाड़ लिया। अब मैं इस सभा में बैठे हुए सभी बहनों और भाइयों से एक बार फिर से दरख़्वास्त करूँगा कि जो भी भाई या बहन अपने आपको इस पद के लिए उपयुक्त मानते हैं वो अपना नाम मुझे दें ताकि हम जंगल में भ्रष्टाचार-विरोधी सुशासन के लिए तैयार हो सकें।”

एक बार फिर से सभी जीव एक-दूसरे के मुंह को ताकने लगे। कोई भी शेर के विरोध में नहीं खड़ा होना चाहता था। यह देख खरगोश कहने लगा कि आज पता चल गया है कि जंगल में कोई भी भ्रष्ट शासन के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाना चाहता। सभी जैसा शासन है, उसी में जीना चाहते हैं। उसने एक बार फिर बगुले से कहा— “अब आप ही बताइए कि हमें क्या करना चाहिए?”

यह सुन कर बगुला कहने लगा— “देखो भाइयो, आप सभी यहाँ आये; इससे एक बात तो स्पष्ट होती है कि आप भी इस भ्रष्ट शासन का विरोध करना चाहते हैं और यहाँ जो चर्चा हुई है उससे भी यह साबित होता है कि हर कोई टालमटोल करके इस शासन के खिलाफ आवाज़ उठाना नहीं चाहता। सरपंच पद पर खड़ा होकर कोई भी युवा साथी सहज होकर शेर से पंगा नहीं लेना चाहता। यदि हम खुलकर इस बात का विरोध नहीं करेंगे तो वह यूँ ही अपनी मनमानी करता रहेगा। जिससे आम जीव का जीना कठिन हो जाएगा।

किसी की भी बहू-बेटी को उसके पंच उठा ले जायेंगे और हम आराम से देखते रहेंगे। मरे हुए तो हम वैसे ही हैं — जब हमारा ज़मीर ही मर चुका है तो हमें जीते हुए भी मृत के समान है; मगर हमें अपने जंगल के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा ताकि हमारी आने वाली नस्लें इस प्रकार से भ्रष्टाचार से मुक्त हो सकें। ये शक्तिशाली जीव पद नियुक्ति के समय हमें जाने क्या-क्या सपने दिखाते हैं और बनने के बाद हमारी बहुओं-बेटियों को उठा लेते हैं। हम पूछने जायें तो हमें गुंडों से वापस भेज दिया जाता है। अब बताओ हमें कुछ तो करना होगा। मरना तो हमें वैसे भी है और कुछ करेंगे तो भी मरना है तो क्यों न हम कुछ करके ही मरें। कल को चील बहन को कोई उठा ले, या किसी कबूतर की बहन, माँ या पत्नी को कोई उठा ले जायेगा। उसे छुड़ाने जाओ तो उसके पंच उसे मार डालेंगे और खा जायेंगे। मैना, बटेर, गुरशल व अन्य भी जंगल की बहनें, पत्नियाँ और माताएँ हैं। सबकी इज़्ज़त है। रिश्वत माँगी जाती है। एक जीव दूसरे जीव का खून चूसवाने के लिए उसके पास ले जाता है। कब तक चलेगा यह? इनके भय से जंगल की गर्भवती बहनों ने मादा संतानों को जन्म देना ही बंद कर दिया। घर इज़्ज़त जाने से तो अच्छा है कि उसे पैदा ही न हो। अब आप में से कोई भी यदि इस शासन का विरोध नहीं करना चाहता तो मत करो — हमारा क्या है, हम तो आज यहाँ हैं तो कल कहीं और चले जायेंगे, पर तुम तो कुछ समझो।”

बगुले की आवाज़ में जोश बढ़ता ही गया मगर सभी चुपचाप सुनते रहे। बोलने को कोई भी तैयार नहीं था। अंततः खरगोश बोला— “भाई बगुले, मैं जानता हूँ कि यदि आप इसी प्रकार बोलते रहे तो इन सबमें जोश ज़रूर जागेगा और ये भ्रष्ट शासन के विरुद्ध आवाज़ उठाने को तैयार हो जाएँगे। मगर मेरा मानना है कि हमें घृणा पाप से करनी चाहिए, न कि पापी से। हम यदि चाहें तो पाप करने वाले को भी सुधार सकते हैं। मैं चाहता हूँ कि आप इस बारे में और राय दें।”

बगुला कहने लगा— “यदि कोई उसका प्रतिद्वंदी नहीं उठना चाहता तो कोई बात नहीं। एक और तरीका है जो उसे सही रास्ते पर ला सकता है और वह है एकजुटता। यदि जंगल के सारे जीव-जन्तु जो आज यहाँ एकत्रित हुए हैं, इसी प्रकार उसके पास एकत्रित होकर चलें और उससे कहें कि यदि वह अमन-शांति चाहता है तो जंगल से भ्रष्टाचार ख़त्म करके एक सुशासन की नींव रखें। इसके लिए उसे खुद सुधरना होगा। ईमानदारी से काम करना होगा; उसका जो भी प्रतिनिधि या पंच उसके ख़िलाफ़ या जंगल के जीवों के ख़िलाफ़ कोई गलत साज़िश या गलत काम करे, उसे तुरंत प्रभाव से जंगल से बाहर कर दें — फिर वह चाहे जहाँ जाये। जंगल की जनता का हित करे; उसके साथ दुर्व्यवहार न हो; सबकी बहुओं-बेटियों की इज़्ज़त हो। उसके आचरण से ही प्रभाव होकर अन्य पंच भी वैसा ही व्यवहार करने लगेंगे। तब जाकर इस जंगल में अमन-शान्ति हो सकेगी।”

यह बात सुनकर सारे जीव एक साथ पुकार उठे— “आपकी यह बात सही है। चलो हम अभी शेर के पास चलते हैं और उसे इस बारे में बताते हैं। यदि वह नहीं मानता है तो उसको भी जंगल छोड़ने के लिए मजबूर कर देंगे। यहाँ पर सभी जीवों का बराबर का हक है। अकेली वही थोड़ी ही है शासन करने वाली। आज ही हम दिखा देंगे कि हमारे वोट में कितनी पावर है।” यह कहकर सभी हो-हल्ला करने लगे। तभी एक ओर से शेर की दहाड़ की आवाज़ सभी को सुनाई दी। कुछ ही समय में शेर उसी मचान पर आ गया जिस पर खरगोश बैठा था। शेर को देखकर भी कोई नहीं घबराया। शेर उस मचान पर बैठकर कहने लगा—

“देखो भाइयो और बहनो, आज तक मैं यही सोचता रहा कि राज केवल बाजुओं के दम पर ही किया जा सकता है, परन्तु आज मुझे यहाँ आकर पता चला कि राज केवल आप सभी के साथ मिलकर किया जा सकता है। यदि आप साथ हैं तो राज है, अन्यथा कुछ नहीं। मैं उस पेड़ के पीछे खड़ा सबकी बातें सुन रहा था। उस समय मुझे तुम्हारी बातों पर हँसी आ रही थी। मगर जब इस बगुले ने तुम सबको समझाना प्रारम्भ किया तो मुझे पता चला कि मैं आप सभी से हूँ; आप मुझसे नहीं हैं। तो भाइयो और बहनो, अब तक जो मुझसे अनजाने में हुआ है उसके लिए मैं आप सभी से माफी माँगता हूँ। भविष्य में कभी ऐसा नहीं होगा, और हाँ यदि आप में से कोई और सरपंच बनना चाहता है तो मैं सहजता से सरपंच पद से इस्तीफ़ा देने को तैयार हूँ और आपका पूरा-पूरा सहयोग करने को भी तैयार हूँ। यदि आपको लगता है कि मुझे सुधारने का एक और मौका दिया जाये तो भी मैं आपके साथ ही हूँ। अब आगे से चाहे जो भी बहन कैसी भी घूमे, किसी को किसी प्रकार का कोई भी खतरा किसी से नहीं रहेगा। मैं आज से ही यह ऐलान करता हूँ कि आने वाले समय में हमारा जंगल सबसे सुन्दर और सुशासित होगा। अब तक जो गलती मुझसे हुई है, एक बार फिर से मैं आप सभी से हाथ जोड़कर माफी माँगता हूँ और आपसे आशा करता हूँ कि आप मुझे एक मौका और देंगे।”

सभी ने खुशी-खुशी उसे सुधारने का एक मौका दे दिया और सचमुच छह महीने के भीतर ही वहाँ सुशासन करके दिखा दिया। जंगल में आज भी सभी मादा पक्षी आज़ादी से घूम सकती हैं। किसी का किसी पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं है। कोई मनमानी नहीं कर सकता।

-0-

डॉ. नवल पाल प्रभाकर दिनकर
ग्राम व डाकघर — साल्हावास, तहसील व जिला — झज्जर, राज्य हरियाणा, पिन: 124146
फोन: 9671004416
ईमेल: parbhakarnavalpal@gmail.com

 

Author

  • authors books shows writer fiction fables showing 46492673

    लेखकों के द्वारा प्रकाशित लेख: हमारे लेखकों ने विविध विषयों पर उच्च गुणवत्ता के लेख लिखे हैं। इनमें साहित्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाजशास्त्र, और कला जैसे विषय शामिल हैं। प्रत्येक लेख में गहन शोध और विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठकों को सटीक और विस्तृत जानकारी मिलती है। हमारे लेखकों की लेखनी में स्पष्टता, सजीव चित्रण, और प्रभावशाली शैली की विशेषता है, जो पाठकों को अंत तक बाँधे रखती है।

    View all posts
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Scroll to Top
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x